बौद्ध उपासकों को भी हिंदू धर्म के सरनेम को त्यागना पडेगा बौद्ध संस्कृति से जुड़े नामों की पहचान करना होगा..
हिन्दू धर्म त्यागने और बुद्धिष्ट बन जाने पर भी हमारे नाम और सरनेम हमारी पुरानी जातियों से ही संबंधित होने के कारण मेश्राम, रामटेके, खोब्रागडे, बोरकर, गजभिये आदि को महार, अहिरवार, बरैया आदी को चमार समझाजाता है. तथा लाहोरी, मलिक, दासत,बाली वाल्मिकी आदि को भंगी समझा जाता है. इसी प्रकार अन्य जातिसूचक नाम और उपनामों के कारण हमें हमारी पुरानी जाती और तदनुसार हमें हमारे पुराने धर्म से संबंधितही जाना जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि व्यक्ति की पहचान उसकेसंस्कारों उसके कार्यों से बनती है. हमें पुराने हिन्दू धर्म में सिखाया गया था की नामकरण संस्कार करते समय मनुस्मृति में वर्णित आदेशों का पालन किया जाना चाहिए. मनुस्मृति में वर्णित आदेशों का पालन किया जाना चाहिए. मनुस्मृति में लिखा है – मंगल्यं ब्राम्हणस्य स्यात्क्षत्रियस्य बलन्वितम वैशस्य धनसंयुक्त शूद्रस्य तु जुगूप्गितम्। अर्थात ब्राम्हण नाम मंगल सूचक शब्द से युक्, क्षत्रिय का बलसूचक शब्द से युक्त, वैश्य का धनवाचक शब्द से युक्त और शुद्रातिशुद्रों का नाम निन्दित शब्द से युक्त नामकरण करना चाहिए और सरनेम के लिए लिखा है – शर्मवद ब्राम्हणस्य स्यादाज्ञो रक्षासमन्वितम् वैशस्य पुष्टिसंयुक्तं शूद्रस्य प्रेष्यसंयुक्त। अर्थात ब्राम्हण का उपनाम शर्मा शब्द से युक्त, क्षत्रिय का रक्षा शब्द से युक्त, वैश्य का पुष्टि शब्द से युक्त, और शुद्र का प्रेष्य (दास) शब्द से युक्त उपाधि करना चाहिए. (मनुस्मृति अध्याय २ श्लोक ३१,३२) विष्णु पुराण में भी शुद्रों के नाम घृणित (यथा-दीनदास) ही रखने की आज्ञा दी गई है. इस प्रकार हम आज भी हिन्दू शुद्रों के नाम व उपनामों को ढो रहे है. आज हमने अपने नाम तो नये-नये रखने शुरू कर दिये है परंतु सरनेम नहीं बदले है. इस संदर्भ में २१ वी शती में उत्तरी भारत के हिंदू धर्म से बौद्ध बने उपासकों से हमें अवश्य ही शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए. उल्लेखनीय है की वहा के लोगों ने अपने सरनेम बोधी, बौद्ध, गौतम, अहिंसक, जीवक, मौर्य, बर्धन, कनिष्क, शाक्य, जैसे रखना शुरू करदिया है. इसी तरह से ब्राम्हण जाती से बौद्ध बने उपासकों ने भी जैसे की, डॉ. सुरेन्द्र शर्मा (पंजाब), डॉ. रुपाताई कुळकर्णी (महाराष्ट्र) ने बौद्ध धम्म ग्रहण करने के पश्चात अपने उपनाम बदलकर क्रमशः डॉ. सुरेद्र अज्ञात व डॉ. रुपाताई बौद्ध रखा है. उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश में भी ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे..
जयभीम.. नमो बुद्धाय.. –
निर्वाण बोधी, नागपुर
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buddha
Jai Bhim Namo Buddhay
I am Vikash Boudh frm Haryana
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buddhism pls.
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aisa kuch bhi rakh lo baudh kitabon me se tumko pasand aaye, Yahan is website par kai hindi baudh kitaben hain…aisa kuch bhi jo baudh sanskriti parampara aur soch se juda ho, use darshata ho…Mujhe vyakrigat roop se DEEKSHA pasand hai…
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Muje baudh darama me ane ke lie kya karana hoga?
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‘बौद्ध धर्म को सिर्फ दो शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है- अभ्यास और जागरूकता।’ – दलाई लामा
” जो ‘जागा’, वही ‘बुद्ध’ ” ~ ओशो : –
” ‘बुद्ध जागरण की अवस्था का नाम है’| ‘गौतम बुद्ध एक नाम है’| ‘ऐसे और अनेंकों नाम हैं|’ धम्मपद के अंतिम सूत्रों का दिन आ गया!
लंबी थी यात्रा, पर बड़ी प्रीतिकर थी। मैं तो चाहता था-सदा चले। बुद्ध के साथ उठना, बुद्ध के साथ बैठना; बुद्ध की हवा में डोलना, बुद्ध की किरणों को पकड़ना; फिर से जीना उस शाश्वत पुराण को; बुद्ध और बुद्ध के शिष्यों के बीच जो अपूर्व घटनाएं घटीं, उन्हें फिर से समझना-बूझना-गुन ना; उन्हें फिर हृदय में बिठालना-यात्रा अदभुत थी।
पर यात्रा कितनी ही अदभुत हो, जिसकी शुरूआत है, उसका अंत है। हमकितनी ही चाहें, तो भी यहां शाश्वता नहीं हो सकता। यहां बुद्ध भी अवतरित होते हैं और विलीन हो जाते हैं। औरों की तो बात ही क्या! यहां सत्य भी आता है, तो ठहर नहीं पाता। क्षणभर को कौंध होती है, खो जाता है। यहां रोशनी नहीं उतरती, ऐसा नहीं। उतरती है। उतर भी नहीं पाती कि जाने का क्षण आ जाता है।
बुद्ध ने ठीक ही कहा है-यहां सभी कुछ क्षणभंगुर है। बेशर्त, सभी कुछ क्षणभंगुर है। और जो इस क्षणभंगुरता को जान लेता है, उसका यहां आना बंद हो जाता है। हम तभी तक यहां टटोलते हैं, जब तकहमें यह भ्रांति होती है कि शायदक्षणभंगुर में शाश्वत मिल जाए! शायद सुख में आनंद मिल जाए। शायदप्रेम में प्रार्थना मिल जाए। शायद देह में आत्मा मिल जाए। शायद पदार्थ में परमात्मा मिल जाए। शायद समय में हम उसे खोज लें, जो समय के पार है।
पर जो नहीं होना, वह नहीं होना। जो नहीं होता, वह नहीं हो सकता है।
यहां सत्य भी आता है, तो बस झलक दे पाता है। इस जगत का स्वभाव ही क्षणभंगुरता है। यहां शाश्वत भी पैर जमाकर खड़ा नहीं हो सकता! यह धारा बहती ही रहती है। यहां शुरुआत है; मध्य है; और अंत है। और देर नहीं लगती। और जितनी जीवंत बात हो, उतने जल्दी समाप्त हो जाती है। पत्थर तो देर तक पड़ा रहता है। फूल सुबह खिले, सांझ मुरझा जाते हैं।
यही कारण है कि बुद्धों के होने का हमें भरोसा नहीं आता। क्षणभर को रोशनी उतरती है, फिर खो जाती है। देर तक अंधेरा-और कभी-कभी रोशनी प्रगट होती है। सदियां बीतजाती हैं, तब रोशनी प्रगट होती है। पुरानी याददाश्तें भूल जाती हैं, तब रोशनी प्रगट होती है। फिरहम भरोसा नहीं कर पाते।
यहां तो हमें उस पर ही भरोसा ठीक से नहीं बैठता, जो रोज-रोज होता है। यहां चीजें इतनी स्वप्नवत हैं! भरोसा हो तो कैसे हो। और जो कभी-कभी होता है सदियों में, जो विरल है, उस पर तो कैसे भरोसा हो! हमारे तो अनुभव में पहले कभी नहीं हुआ था, और हमारे अनुभव में शायद फिर कभी नहीं होगा।
इसलिए बुद्धों पर हमें गहरे में संदेह बना रहता है। ऐसे व्यक्ति हुए! ऐसे व्यक्ति हो सकते हैं? और जब तक ऐसी आस्था प्रगाढ़ न हो कि ऐसे व्यक्ति हुए हैं, अब भी होसकते हैं, आगे भी होते रहेंगे-तब तक तुम्हारे भीतर बुद्धत्व का जन्म नहीं हो सकेगा। क्योंकि अगरयह भीतर संदेह हो कि बुद्ध होते ही नहीं, तो तुम कैसे बुद्धत्व कीयात्रा करोगे? जो होता ही नहीं, उस तरफ कोई भी नहीं जाता।
जो होता है-सुनिश्चित होता है-ऐसी जब प्रगाढ़ता से तुम्हारे प्राणों में बात बैठ जाएगी, तभी तुम कदम उठा सकोगे अज्ञात की ओर।
इसलिए बुद्ध की चर्चा की। इसलिए और बुद्धों की भी तुमसे चर्चा कीहै। सिर्फ यह भरोसा दिलाने के लिए; तुम्हारे भीतर यह आस्था उमगआए कि नहीं, तुम किसी व्यर्थ खोज में नहीं लग गये हो; परमात्मा है। तुम अंधेरे में नहीं चल रहे हो, यह रास्ता खूब चला हुआ है। औरभी लोग तुमसे पहले इस पर चले हैं। और ऐसा पहले ही होता था-ऐसा नहीं। फिर हो सकता है। क्योंकि तुम्हारे भीतर वह सब मौजूद है, जोबुद्ध के भीतर मौजूद था। जरा बुद्ध पर भरोसा आने की जरूरत है।
और जब मैं कहता हूं: बुद्ध पर भरोसा आने की जरूरत, तो मेरा अर्थगौतम बुद्ध से नहीं है। और भी बुद्ध हुए हैं। क्राइस्ट और कृष्ण, और मुहम्मद और महावीर, और लाओत्सू और जरथुस्त्र। जो जागा, वही बुद्ध। बुद्ध जागरण की अवस्था का नाम है। गौतम बुद्ध एकनाम है। ऐसे और अनेंकों नाम हैं।
गौतम बुद्ध के साथ इन अनेक महीनों तक हमने सत्संग किया। धम्मपद के तो अंतिम सूत्र का दिनआ गया, लेकिन इस सत्संग को भूल मतजाना। इसे सम्हालकर रखना। यह परमसंपदा है। इसी संपदा में तुम्हारा सौभाग्य छिपा है। इसी संपदा में तुम्हारा भविष्य है।
फिर-फिर इन गाथाओं को सोचना। फिर-फिर इन गाथाओं को गुनगुनाना। फिर-फिर इन अपूर्व दृश्यों को स्मरण में लाना। ताकिबार-बार के आघात से तुम्हारे भीतर सुनिश्चित रेखाएं हो जाएं। पत्थर पर भी रस्सी आती-जाती रहतीहै, तो निशान पड़ जाते हैं।
इसलिए इस देश ने अनूठी बात खोजी थी, जो दुनिया में कहीं भी नहीं है। वह थी-पाठ। पढ़ना तो एक बात है। पाठ बिलकुल ही दूसरी बात है।पढ़ने का तो अर्थ होता है: एक किताब पढ़ ली, खतम हो गयी। बात समाप्त हो गयी। पाठ का अर्थ होताहै: जो पढ़ा, उसे फिर पढ़ा, फिर-फिर पढ़ा। क्योंकि कुछ ऐसी बातें हैं इस जगत में, जो एक ही बार पढ़ने से किसकी समझ में आ सकती हैं! कुछ ऐसी बातें हैं इस जगत में, जिनमेंगहराइयों पर गहराइयां हैं। जिनको तुम जितना खोदोगे, उतने ही अमृत की संभावना बढ़ती जाएगी। उन्हीं को हम शास्त्र कहते हैं। किताब और शास्त्र में यही फर्क है। किताब वह, जिसमें एक ही पर्त होती है। एक बार पढ़ ली और खतम हो गयी। एक उपन्यास पढ़ा और व्यर्थ हो गया। एक फिल्म देखी और बात खतम हो गयी। दुबारा कौन उस फिल्मको देखना चाहेगा! देखने को कुछ बचा ही नहीं। सतह थी, चुक गयी।
शास्त्र हम कहते हैं ऐसी किताब को, जिसे जितनी बार देखा, उतनी बार नए अर्थ पैदा हुए। जितनी बारझांका, उतनी बार कुछ नया हाथ लगा।जितनी बार भीतर गए, कुछ लेकर लौटे। बार-बार गए और बार-बार ज्यादा मिला। क्यों? क्योंकि तुम्हारा अनुभव बढ़ता गया। तुम्हारे मनन की क्षमता बढ़ती गयी। तुम्हारे ध्यान की क्षमता बढ़ती गयी।
बुद्धों के वचन ऐसे वचन हैं कि तुम जन्मों-जन्मों तक खोदते रहोगे, तो भी तुम आखिरी स्थान पर नहीं पहुँच पाओगे। आएगा ही नहीं।गहराई के बाद और गहराई। गहराई बढ़ती चली जाती है।
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very good information written by u,..
क्या में जान सकता हु की बोद्ध धर्म में अंतिम संस्कार कैसे करते है?
Gyaprasad Gujarra Bhoore / S/o Shree palttoram ahirwar xxxxxxxxxx
Internet par vevajah apna address dene se kya labh,,, ye apni security se khilvaad karna hai…aap apne comment me apne vichar likhen us post par….
Hello nice dharm
Nice dharm
मै बौद्ध धर्म ग्रहण करना चाहता हूं। मै बौद्ध धर्म के प्रबुद्ध अनुयायियों से ज्ञान अर्जित करना चाहता हूं, जिन्हें बौद्ध धर्म का संपूर्ण ज्ञान हो। कृपया मुझे यह बताएं कि ऐसे लोग कहाँ और कैसे मिलेंगे ?
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मै बौद्ध धर्म ग्रहण करना चाहता हूं। मै बौद्ध धर्म के प्रबुद्ध अनुयायियों से ज्ञान अर्जित करना चाहता हूं, जिन्हें बौद्ध धर्म का संपूर्ण ज्ञान हो। कृपया मुझे यह बताएं कि ऐसे लोग कहाँ और कैसे मिलेंगे ? मुझको नयी राह की आवश्यकता है ?
Dilip C Mandal
26 July at 16:45 ·
आप नौकरी का एक ही बायो डाटा अलग अलग नेम, सरनेम जैसे दिलीप पांडे, दिलीप सिंह राणा, दिलीप यादव, दिलीप पटेल, दिलीप मौर्य, दिलीप बिंद मुहम्मद अरमान, अरमान अंसारी, दिलीप जाटव, दिलीप पासी, दिलीप मेश्राम, दिलीप कुजूर नाम से कंपनियों के पास भेजिए.
यह प्रयोग 5,000 बायोडाटा के साथ दिल्ली, नोएडा, गुड़गांव की आईटी कंपनियों पर किया जा चुका है.
अगर आपका सरनेम हिंदू सवर्ण जातियों वाला है, तो समान शैक्षणिक योग्ताय और अनुभव के बावजूद, इंटरव्यू का कॉल आने और नौकरी मिलने के मौके ज्यादा हैं.
वैसे, यह प्रयोग आप खुद भी करके देख सकते हैं.
तो जब तक देश ऐसा है, तब तक आरक्षण जाति के आधार पर ही रहेगा.
आर्थिक आधार धोखा है!