सच्चे एवं नकली नेतृत्व की पहचान*
अर्थात
*मान्यवर साहब कांशीरामजी की किताब ”चमचा युग”*
सन 1982 में कांशीरामजी लिखित किताब ”चमचा युग” (An Era of the Stooges) प्रकाशित हुई।
*यह किताब अम्बेडकर के अभ्युदय से लेकर पूना पैक्ट, शोषित समाज के नकली नेतृत्व से होती हुई स्थायी समाधान तक पहुचती है।*
कुल जमा चार भागो में विभक्त यह किताब मात्र 127 पृष्ठों की है।
गौरतलब है कि कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी का औपचारिक गठन 1984 में किया।
मूलतः अंग्रेजी में लिखी गई इस किताब का सरल सहज हिन्दी में अनुवाद रामगोपाल आजाद ने किया है।
*यह किताब महात्मा ज्योतिराव फुले जी को समर्पित की गई है।*
कांशीराम इस पुस्तक के उद्देश्य के बारे में लिखते है कि
*”इस पुस्तक को लिखने का उद्देश्य दलित शोषित समाज को और उसके कार्यकर्ताओं एवं नेताओं को दलित शोषित समाज में व्यापक स्तर पर विद्यमान पिट्ठू तत्वो के बारे में शिक्षित, जागृत और सावधान करना है।*
*इस पुस्तक को जनसाधारण को और विशेषकर कार्यकर्ताओ को सच्चे एवं नकली नेतृत्व के बीच अन्तर को पहचानने की समझ पैदा करने की दृष्टि से भी लिखा गया है।*
उन्हे यह समझना भी आवश्यक है कि वे किस प्रकार के युग में रह रहे है और कार्य कर रहे है- यह पुस्तक इस उद्देश्य की पूर्ति भी करती है।”
*कांशीरामजी अपनी किताब चमचा युग में उद्धृत करते है कि किस प्रकार प्रसिद्ध डा. अम्बेडकर को उनके ही बिरादरी के अनजाने प्रत्याशी ने हरा दिया।*
वे कहते है कि डा.अम्बेडकर को इसकी आशंका पूना पैक्ट के दौरान थी इसलिए उन्होने पृथक निर्वाचक मण्डल की वकालत की।
*डा आंबेडकर का यह कथन ध्यान देने योग्य है-*
”संयुक्त निर्वाचक मण्डल और सुरक्षित सीटों की प्रणाली के अन्तर्गत स्थिति और भी बदतर हो जायेगी, जो एतत्पष्चात पूना-पैक्ट की शर्तो के अनुसार लागू होगी।
यह कोरी कल्पना मात्र नही है।
पिछले चुनाव ने 1946 निर्णायक रूप से यह सिध्द कर दिया है कि अनुसूचित जातियों के संयुक्त निर्वाचक मण्डल से पूर्ण रूपेण मताधिकारच्युत किया जा सकता है।” – *डा.बी.आर.अम्बेडकर पृ.85 चमचा युग*
*यानि बाबा साहेब ये मानते थे कि वर्तमान मतदान प्रणाली दलित बहुजन को अपने सच्चे प्रतिनीधि चुनने के काम नही आयेगी।*
हिन्दू जिन आरक्षित सीटों में दलित बहुजन को खड़ा करेगे वे दलितों के नही वरन हिन्दूओं के चमचे (हितैषी) होगे।
*मान्यवर कांशीराम पुस्तक के प्रारंभ में चमचा/पिटठु की परिभाषा बतलाते है -*
”चमचा एक देशी शब्द है जो ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयुक्त किया जाता है जो अपने आप क्रियाशील नही हो पाता है बल्कि उसे सक्रिय करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति की आवश्यकता पड़ती है। वह अन्य व्यक्ति चमचे को सदैव अपने व्यक्ति उपयोग और हित में अथवा अपनी जाति की भलाई में इस्तेमाल करता है जो स्वयं चमचे की जाति के लिए हमेशा नुकसानदेह होता है।” – *पृष्ठ-80 चमचा युग*
इस प्रकार कांशीराम मुख्य रूप से चमचों/ मौका परस्तों को छःभागो में बांटते है-
*1. जाति या समुदायवार चमचे*
अनुसूचित जाति -(अनिच्छुक चमचे)- इन्होने संघर्ष करके उज्जवल युग में प्रवेश करने का प्रयास किया लेकिन गांधी और कांग्रेस ने अनिच्छुक चमचा बना दिया।
*अनुसूचित जनजाति* -(नवदीक्षित चमचे)- इन्हे दलितों के संघर्ष के कारण पहचान एवं अधिकार मिल गया लेकिन ये अपने उत्पीड़क को अपना हितैषी समझते है।
*अन्य पिछड़ा वर्ग* – (महत्वकांक्षी चमचे) – ये अब महसूस करते है कि वे दलितों से भी पीछे हो गये है इसलिए इन्हे महत्वकांक्षा बहुत है। इसी कारण बहुजन आंदोलन से जुड़ रहे है।
*अल्पसंख्यक* – (मजबूर चमचे)- इसाई, मुसलमान, सिक्ख, बौध्द ये मजबूर चमचे है क्योकि ये शासक जातियों के रहमों करम पर है।
*2. पार्टीवार चमचे*
ये चमचे अपने आपको दलीय अनुशासन में जकड़े होने का हवाला देकर समाज विरोधी कार्य करते है।
*3. अबोध या अज्ञानी चमचे*
ये वो चमचे है जो अपने शोषको को ही अपना उध्दारक मानते है।
*4 ज्ञानी चमचे अम्बेडकरवादी चमचे*
ये वो लोग है जो बड़ी- बड़ी बाते करते है अम्बेडकर को पढ़ते और कोड भी करते है लेकिन आचरण उसके विपरीत करते है।
कांशीराम इन चम्मचों से सबसे ज्यादा आहत थे।
*5. चमचों के चम्मच*
ये राजनैतिक चम्मच अपनी जाति या समुदाय में पैठ दिखाने के लिए अपने चमचे बनाते है। जो शासक जातियों की पूरी सेवा करने के लिए तत्पर रहते है। शिक्षित-नौकरी पेशा वाले लोगो अपने निजी फायदे के लिए इन चम्मचों की चमचागिरी करते है।
*6.चमचे विदेशों में*
विदेश में रहने वाल अछूत जिन्हे लगता है कि भारत में चमचों की कमी है तो वे भारत आकर शासक जाति की चमचागीरी चालू करते है और अपने आपको आम्बेडकर समझने लगते है। जैसे ही दलित बहुजन आंदोलन गति पकड़ेगा वे पुनः खुले रूप में बाहर आ जायेगे।
उनकी यह किताब किसी भी दलित बहुजन को परिस्कृत करने के लिए काफी है।
आज हम जान सकते है कि किस प्रकार चमचों के कारण बसपा कमजोर हो गई।
*बहुजन आन्दोलन गद्दारों का आन्दोलन न बन पाये इसलिए भविष्य को ध्यान में रखकर उन्होने आगाह करने के लिए यह किताब लिखीं ।*
यह किताब अम्बेडकर आन्दोलन को एक कदम आगे ले जाने के लिए प्रेरित करती ।
*वे अम्बेडकर के शब्दो को मंत्रो की तरह रटने के लिए नही बल्कि उसका अंगीकार करने के लिए जोर देते। इस किताब में घटनाओं एवं तथ्यों का विशलेषण तथा व्याख्या महत्वपूर्ण।*
*कांशीराम को सभी जानते होगे, लेकिन समझ वही सकते है जिन्होने उनकी किताब चमचा युग पढ़ी होगी।*
आज भी उनकी किताब प्रासंगीक है ओर हमेशा रहेगी।