Monthly Archives: October 2017
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मंगलवार 24-oct-2017 को बसपा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री उत्तरप्रदेश मायावती ने उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में एक बार फिर रैली में हिंदू धर्म छोड़ने की धमकी दी है। उन्होंने कहा है कि वह शंकराचार्य, भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को हाशिए पर पड़े समाज के सुधार के लिए एक मौका देंगीं। अगर वे इसमें नाकाम रहे, तो फिर वह डॉ अंबेडकर के रास्ते पर चलेंगी और अपने पूरे समाज के साथ बौद्ध धम्म में जायेंगी, ये खबर लगभग सभी बड़े अख़बारों में छपी है
आजमगढ़ । बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने मंगलवार को चेताया कि अगर हिंदू धर्म के ठेकेदारों ने दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के प्रति अपना नजरिया नहीं बदला तो वह अपना धर्म बदल लेंगी। उन्होंने कहा कि वह अपने लाखों अनुयायियों के साथ बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की तरह बौद्ध धर्म अपना लेंगी।अपना मूल वोट बैंक बिखरता देख धरातल पर संघर्ष ना सही बसपा अध्यक्ष मायावती मंचों से भाषण देकर उसे एकजुट बनाए रखना चाहती हैं। बीते कुछ दिनों से मायावती लगातार पार्टी की रैलियों में हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध बन जाने की धमकी देती देखी जा रही हैं। अपने मुख्य एजेंडे पर लौटते हुए फिर से जातिगत भेदभाव का मुद्दा उठा रही हैं।
मंगलवार को मायावती उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में थीं यहां एक बार फिर बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने रैली में हिंदू धर्म छोड़ने की धमकी दी है। उन्होंने कहा है कि वह शंकराचार्य, भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को हाशिए पर पड़े समाज के सुधार के लिए एक मौका देंगीं। अगर वे इसमें नाकाम रहे, तो फिर वह अंबेडकर के रास्ते पर चलेंगी।
बसपा अध्यक्ष ने इस दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी तंज कसा। वह बोलीं कि वह (योगी) तो मंदिरों में पूजा से फुर्सत मिलने के बाद ही विकास पर ध्यान देंगे।
वह यहां ‘रानी की सराय’ में आजमगढ़, वाराणसी और गोरखपुर के बसपा समर्थकों को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा, “धर्म बदलने से पहले मैं शंकराचार्यों, हिंदू धर्म से जुड़ी संस्थाओं और भाजपा-आरएसएस को एक मौका दूंगी, ताकि वे दलितों, आदिवासियों, पिछड़े वर्ग और धर्म बदलने वाले लोगों के खिलाफ समाज में जारी कुप्रथाएं और अत्याचार को खत्म करें।
अगर वे इसमें नाकाम हुए, तो फिर मेरे पास अंबेडकर के रास्ते पर चलने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं है। यही नहीं, मायावती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पर भी निशाना साधा। उन्होंने नोटबंदी, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और चुनाव से पहले किए गए पीएम द्वारा एक चौथाई वादों को न पूरा कर पाने के लिए पीएम मोदी की आलोचना की।
Delhi University Professor Rajkumar on Mayawati’s descision on mass conversion/return back to Buddhism:
हमारी राजनीति भले ही कुछ मंद पड़ी हो लेकिन बहुजन आन्दोलन की पहुंच आज निश्चित रूप से देश दुनिया में बढ़ी है, मत भूलियेगा बुरी तरह हारने के बावजूद सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही 2017 के विधानसभा चुनाव में BSP को लगभग दो करोड़ वोट मिले थे, और बहनजी आज भी बहुजन समाज की शिखर शख्सियत हैं उनका बार बार बुद्धिज़्म की तरफ जाने का इशारा बहुजन समाज को आने वाले ऐतिहासिक अवसर के लिये मनोवैज्ञानिक रुप से तैयार करना है ! हम जानते हैं कि जातिवादी उस कुत्ते की दुम की तरह है जो कभी सीधी नही होगी. बाबा साहेब ने भी इनके बारे में लिखा है कि सब कुछ संभव है लेकिन जहर को अमृत नही बनाया जा सकता. खासतौर से सभी गैर राजनीतिक संगठनों, संस्थाओं और व्यक्तियों को उस महान अवसर का साक्षी बनने के लिये अभी से जी जान से लग जाना चाहिए जब करोड़ो लोग हजारो साल की गुलामी के दुष्चक्र को तोड़ कर अपने प्रबुद्ध एवं स्वतंत्र होने का विजयी घोष करेंगें
पूरी दुनिया जानती है कि बहनजी प्रखर बौद्धिक है लेकिन महत्व उनके अकेले बुद्धिस्ट होने का नहीं, वह तो उनके लिये बहुत आसान है, वास्तविक मुद्दा करोड़ो लोगो को साथ लेकर चलने और उन्हे मानसिक सांस्कृतिक गुलामी से मुक्ति दिलाने का है.. साथ लेकर चलना ही नेतृत्व का असली गुण है.
धीरे धीरे लोगों का EVM मशीन पर शक पक्का पड़ता जा रहा है, खासकर बहुजन समाज के लोगों ने इसका पुरजोर विरोध करना शुरू कर दिया है,वामन मेश्राम का आंखे खोलने वाला ये वीडियो जरूर सुने , आप भी चुनाव आयुक्त को इसी तरह का पत्र लिख सकते हैं
हरियाणा हिसार,14 अक्टूबर।तथागत बुद्ध के सैंकड़ों अनुयायियों ने धम्म प्रवर्तन/वापसी दिवस के उपलक्ष्य में शनिवार को हिसार लघुसचिवालय से लेकर अग्रोहा बौद्ध स्तूप तक धम्म यात्रा निकाली।भारतीय बौद्ध महासभा,धम्म भूमि पलवल,समता सैनिक दल व अन्य संगठनों ने मिलकर इस धम्म कार्यक्रम का आयोजन किया………..Rajesh Rathi FB post
धम्मप्रवर्तन/वापसी दिवस 14-oct पर बुद्ध अनुयायियों ने हिसार से अग्रोहा तक निकाली धम्म यात्रा
लघुसचिवालय में डॉ आंबेडकर को माल्यापर्ण के बाद अग्रोहा बौद्ध स्तूप पर हुई धम्म देशना
हिसार,14 अक्टूबर।तथागत बुद्ध के सैंकड़ों अनुयायियों ने धम्म प्रवर्तन/वापसी दिवस के उपलक्ष्य में शनिवार को हिसार लघुसचिवालय से लेकर अग्रोहा बौद्ध स्तूप तक धम्म यात्रा निकाली।भारतीय बौद्ध महासभा,धम्म भूमि पलवल,समता सैनिक दल व अन्य संगठनों ने मिलकर इस धम्म कार्यक्रम का आयोजन किया था।यात्रा की शुरुआत लघुसचिवालय स्थित संविधान निर्माता डॉ भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर किया गया।उसके उपरांत मोटरसाइकिल व गाड़ियों के काफिले से यात्रा अग्रोहा पहुंची।
धम्म देशना करने पहुँचे भन्ते धम्मशील,भन्ते क्षमाशील अग्रोहा बौद्ध स्तूप पर पहुंचे और बुद्ध वन्दना कर स्तूप की गरिमा के साथ अनुयायियों को धम्म की राह बताई।त्रिशरण व पंचशील पाठ के बाद कार्यक्रम के वक्ताओं ने कहा कि 44 साल अध्ययन के बाद 14 अक्टूबर 1956 को बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर ने रूढ़िवादी,वर्णवादी व भेदभाव युक्त धर्म को छोड़कर मानवतावादी बुद्ध धम्म को लाखों अनुयायियों के साथ नागपुर की धरती पर आत्मसात किया था।इसी उपलक्ष्य में हर साल बुद्ध धम्म के अनुयायी 14 अक्टूबर को तथागत बुद्ध और डॉ अम्बेडकर को याद करते हुए धम्म प्रवर्तन दिवस मनाते है।मुख्यवक्ता डॉ जगराम ने कहा कि अग्रोहा की भूमि पर तथागत बुद्ध के पवित्र कदम पड़े थे।
यहां पर विशाल बौद्ध विहार होता था जिसमे हजारों बौद्ध भिक्षु निवास करते थे।सम्राट अशोक द्वारा चौरासी हजार बुद्ध शिलालेखों का निर्माण करवाया गया जिसमें अग्रोहा स्तूप व हिसार की लाट की मस्जिद भी शामिल है।लेक़िन मानवतावाद विरोधी शक्तियो ने अग्रोहा के साथ देश भर के बौद्ध स्तूपों को नष्ट कर दिया।डॉ जगराम ने कहा की बुद्ध की संस्कृति संसार भर में फैली हुई है।उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म को आगे बढ़ाने व इसके प्रचार-प्रसार के लिए एकजुट होकर काम करना पड़ेगा।बुद्ध की राह ही मानवता की असली राह है।देश मे जो धार्मिक कट्टरता का माहौल बन चुका है उसे केवल बुद्ध के बताए शांति के मार्ग से ठीक किया जा सकता है।भारतीय बौद्ध महासभा के जिलाध्यक्ष राजेश बौद्ध ने बताया कि महाकारुणिक बुद्ध की ऐतिहासिक भूमि अग्रोहा का पता भारतीय पुरातत्विक विभाग की खुदाई के बाद लगा।लेकिन सरकार बौद्ध स्तूप की लगातार उपेक्षा कर रही है।स्तूप की सेंकडो एकड़ भूमि यहाँ कब्जाई जा चुकी है।बुद्ध स्तूप की सुरक्षा व संरक्षण को लेकर अनुयायियों का एक दल जल्द ही उचित कदम उठाएगा।
मंगलकामना व प्रसाद वितरण के साथ कार्यक्रम की समाप्ति हुई।इस मोके पर पूनम बौद्ध, सोनू विशरवाल,जगदीश बौद्ध,विनोद शिला, सज्जन,नरेश खोखर,रविन्द्र चौहान,राजेंद्र बौद्ध,कमलेश बरबड़,तेलूराम अग्रोहा,इंद्राज बौद्ध,राजबीर सोरखी,विक्रम अटल,राजेश,रमेश बोद्ध,सोनू,सन्दीप मंगाली व अन्य मौजूद थे।
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आप सभी को धम्म क्रांति/वापसी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें, आज 14अक्टूबर को ही सन 1956 में डा बी.आर. अम्बेडकर ने अपने लाखों अनुयायियों समेत सार्वजानिक जलसा करके बौद्ध धर्मं में लौटने की दीक्षा ली थी| इसी अवसर पर उन्होंने अपने अनुयायियों के लिए जो 22 प्रतिज्ञाएँ तय की थी वो इस पोस्ट में प्रस्तुत हैं
आप सभी को धम्म क्रांति/वापसी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें, आज 14अक्टूबर को ही सन 1956 में डा बी.आर. अम्बेडकर ने अपने लाखों अनुयायियों समेत सार्वजानिक जलसा करके बौद्ध धर्मं में लौटने की दीक्षा ली थी| इसी अवसर पर उन्होंने अपने अनुयायियों के लिए जो 22 प्रतिज्ञाएँ तय की थी वो इस पोस्ट में प्रस्तुत हैं

डा बी.आर. अम्बेडकर ने बौद्ध धर्मं में लौटने के अवसर पर,14 अक्टूबर 1956 को अपने अनुयायियों के लिए 22 प्रतिज्ञाएँ निर्धारित कीं.ब्राह्मणवादी कर्मकांडों के भव्य धार्मिक इमारतें, मीडिया प्रचार,संगीत, खुसबू-धुआं, भीड़,ढोल नगाड़े में इतना आकर्षण है की हमारा भोला भला व्यक्ति भटक सकता है ये बात डॉ आंबेडकर अच्छी तरह जानते थे इसीलिए उन्होंने इन प्रतिज्ञाओं की जरूरत महसूस हुई होगी| पर ये भी सच है की इन प्रतिज्ञाओं की जड़ और इतिहास जाने बिना लोग इनको जानकर भी मान नहीं पाते, उन्हें ये प्रितिग्य अजीब तो लगती हैं पर कभी इनकी जड़ तक पहुचने की कोशिश नहीं करते, और हिन्दू दलित बने रहते हैं |उन्होंने इन शपथों को निर्धारित किया ताकि हिंदू धर्म के बंधनों को पूरी तरह पृथक किया जा सके.ये 22 प्रतिज्ञाएँ हिंदू मान्यताओं और पद्धतियों की जड़ों पर गहरा आघात करती हैं. प्रसिद्ध 22 प्रतिज्ञाएँ निम्न हैं:
1- मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा
2- मैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा
3- मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा.
4- मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूँ
5- मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे. मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूँ
6- मैं श्रद्धा (श्राद्ध) में भाग नहीं लूँगा और न ही पिंड-दान दूँगा.
7- मैं बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों का उल्लंघन करने वाले तरीके से कार्य नहीं करूँगा
8- मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह को स्वीकार नहीं करूँगा
9- मैं मनुष्य की समानता में विश्वास करता हूँ
10- मैं समानता स्थापित करने का प्रयास करूँगा
11- मैं बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग का अनुशरण करूँगा
12- मैं बुद्ध द्वारा निर्धारित परमितों का पालन करूँगा.
13- मैं सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और प्यार भरी दयालुता रखूँगा तथा उनकी रक्षा करूँगा.
14- मैं चोरी नहीं करूँगा.
15- मैं झूठ नहीं बोलूँगा
16- मैं कामुक पापों को नहीं करूँगा.
17- मैं शराब, ड्रग्स जैसे मादक पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा.
18- मैं महान आष्टांगिक मार्ग के पालन का प्रयास करूँगा एवं सहानुभूति और प्यार भरी दयालुता का दैनिक जीवन में अभ्यास करूँगा.
19- मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के लिए हानिकारक है और उन्नति और मानवता के विकास में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और स्व-धर्मं के रूप में बौद्ध धर्म को अपनाता हूँ
20- मैं दृढ़ता के साथ यह विश्वास करता हूँ की बुद्ध का धम्म ही सच्चा धर्म है.
21- मुझे विश्वास है कि मैं फिर से जन्म ले रहा हूँ (इस धर्म परिवर्तन के द्वारा).
22- मैं गंभीरता एवं दृढ़ता के साथ घोषित करता हूँ कि मैं इसके (धर्म परिवर्तन के) बाद अपने जीवन का बुद्ध के सिद्धांतों व शिक्षाओं एवं उनके धम्म के अनुसार मार्गदर्शन करूँगा
डा बी.आर. अम्बेडकर
तृतीय सम्यक बौद्ध सम्मेलन एवं *”गीतों भरी शाम बाबासाहेब के नाम ” आप सभी प्रबुद्ध साथियों का फिर से हार्दिक स्वागत है। इस वर्ष *यूथ फॉर बुद्धिस्ट इंडिया* 12 नवम्बर, 2017 (रविवार) को फिर लेकर आ रहा है उत्तर भारत का सबसे भव्य सम्मेलन, आग्रहकर्ता समस्त अम्बेडकरवादी समाज youth for Buddhist India
कांचा इलैया की किताबें आम तौर पर लाखों में बिकती हैं. उनकी जिस किताब Post Hindu India पर विवाद फैलाने की कोशिश हो रही है, उसकी सारी कॉपी अमेजन और फ्लिपकार्ट पर इस हफ्ते देखते ही देखते बिक गईं. स्टॉक खत्म हो गया…Dilip C Mandal
कौन डरता है कांचा से.
कांचा इलैया की इस किताब पर सारा विवाद इसकी हिंदी कॉपी आने के बाद हुआ. इसका पहला मतलब यह है कि नौ साल से इसकी इंग्लिश कॉपी बिक रही है. अमूमन देश भर की लाइब्रेरी में है. लेकिन मूर्खों को कोई दिक्कत नहीं हुई. अब किताब आम जनता तक पहुंच रही है, तो उनको मिर्ची लग गई है.
इस किताब में आखिर ऐसा क्या है?
क्यों लग रही है मिर्ची?
किताब दरअसल भारत के आदिवासी, दलित और पिछड़े समुदायों के श्रम से उपजे ज्ञान का आख्यान है.
पहला चैप्टर बताता है कि किस तरह आदिवासियों ने ज्ञान का सृजन किया.
दूसरा चैप्टर चमार जाति की ज्ञान क्षेत्र में उपलब्धियों को बताता है.
तीसरा चैप्टर महार जाति के ज्ञान सृजन को रेखांकित करता है.
ऐसे ही एक चैप्टर यादव जाति के ज्ञान और अन्य चैप्टर नाई जाति की उपलब्धियों को दर्ज करता है.
कांचा खुद पशुपालक जाति से हैं और मानते हैं कि जो श्रमशील जातियां हैं. वही ज्ञान का सृजन कर सकती हैं. निठल्ले लोग ज्ञान की सृजन नहीं कर सकते.
यह विश्वस्तर पर स्थापित थ्योरी है और कांचा कोई नई बात नहीं कह रहे हैं.
इसलिए आप पाएंगे कि यूरोप में भी ज्यादातर आविष्कार वर्कशॉप और उससे जुड़ी प्रयोगशालाओं में हुए.
भारत में ज्ञान गुरुकुलों में रहा और इसलिए भारत आविष्कारों की दृष्टि से एक बंजर देश है. बिल्कुल सन्नाटा है यहां.
कांचा की किताब के आलोचक यह नहीं बता रहे हैं कि उन्हें मिर्ची किस बात से लग रही हैं. वे बस हाय हाय कर रहे हैं कि बहुत ज्यादा मिर्ची है.
यह सच भी है कि किताब में भरपूर मिर्च है. निठल्ले समुदायों की खाल खींचकर कांचा ने उस खाल को धूप में सुखा दिया है.
कांचा की किताबें आम तौर पर लाखों में बिकती हैं. उनकी जिस किताब Post Hindu India पर विवाद फैलाने की कोशिश हो रही है, उसकी सारी कॉपी अमेजन और फ्लिपकार्ट पर इस हफ्ते देखते ही देखते बिक गईं. स्टॉक खत्म हो गया.
हिंदी अनुवाद ‘हिंदुत्व मुक्त भारत’ नाम से अब भी उपलब्ध है. 250 रुपए की है. खरीद लीजिए. पता नहीं, कल मिले या न मिले.
विचार को रोकने की कोशिश मत करो. कोई फायदा नहीं होगा. यह राख झाड़कर जिंदा हो जाने वाला विचार है.
Dilip C Mandal खरीदिए. हालांकि अभी उपलब्ध नहीं है. https://www.amazon.in/Post-Hindu-India…/dp/817829902X
हिंदी एडिशन खरीद सकते हैं. https://www.amazon.in/Hindutva-Mukt-Bharat…/dp/B06ZZMKWX3
मूंछ रखना न रखना व्यक्तिगत फैसला है, पर जिस तरह से गुजरात के बहुजनो ने इसको मुद्दा बनाया,ये सब देख कर लगता है धीरे धीरे बहुजन समाज राजनीती करना सीख गया है और संगठन का महत्व जान गया है।
मूंछ रखना न रखना व्यक्तिगत फैसला है, पर जिस तरह से गुजरात के बहुजनो ने इसको मुद्दा बनाया और इतना बड़ा बनाया की सवर्ण मीडिया भी इसे कवर करने पे मजबूर है। इससे पहले भी बहुत से ऐसे दलित मुद्दे हुए हैं जब सारा समाज एकजुट होकर प्रतिकार कर रहा है।ये सब देख कर लगता है धीरे धीरे बहुजन समाज राजनीती करना सीख गया है और संगठन का महत्व सीख गया है। संगठित और राजनैतिक रूप से जगी हुई कौम की आबादी कम हो फिर भी वो अपना वर्चस्व कायम कर सकते हैं, और यहाँ तो बहुजन मेजोरिटी में है, अकेली चमार जाती भारत के मुसलमानो से ज्यादा है।
इस सब में बहुजनो को ध्यान रखना होगा की ये सब राजनैतिक मुद्दे हो सकते हैं पर असल मुक्ति केवल शिक्षा और ज्ञान लेने से ही संभव है, अकेली मूछ कुछ न दे पाएगी पर हाँ अगर उस मूंछ के पीछे एक पढ़ा लिखा बुद्धिमान होगा जो संगठन को सबसे बड़ा मानता होगा तब मुक्ति संभव है
क्या है पूरा मुद्दा जानने के लिए इन लिंक को देखें