जबरदस्त कविता जरूर पढ़ें :- “भीमराव का “बौद्ध” नहीं ये हिन्दू दलित/हरिजन है.”

भीमराव का “बौद्ध” नहीं ये, हिन्दू दलित/हरिजन है.

रोज़ सवेरे मंदिर जाता रखता है मंगल उपवास

शनिदेव की करे अर्चना बेटा इसका रामदास

जय जगदीश हरे आँगन में घर में इसके कीर्तन है

भीमराव का “बौद्ध” नहीं ये हिन्दू दलित/हरिजन है.

 

धर्म दूसरों का ढोता है नंगें पाँव भगा -फिरता

चुल्लू भर पानी की खातिर यहाँ वहां गिरता -पड़ता

कावंडिया बन कर करे गुलामी अकल से भी यह निर्धन है

भीमराव का “बौद्ध” नहीं ये हिन्दू दलित/हरिजन है.

 

मीटर लंबा तिलक माथे पर सुतली डोर गले डाले

हाथ कलावा बांधे फिरता मटरू का पोता

काले इसके आगे शर्माता अब पंडित रामचरण है

भीमराव का “बौद्ध” नहीं ये हिन्दू दलित/हरिजन है ।।

 

इसको तो कुछ पता नहीं है स्कूल,कॉलेज क्या होता

देसी-थैली डाल हलक में दिन भर गफलत में रहता

बालक इसके अनपढ़ रह गए ज्ञान का खाली बर्तन है

भीमराव का “बौद्ध” नहीं ये हिन्दू दलित/हरिजन है.

 

अम्मा इसकी अमरनाथ में मर गयी

पत्थर के नीचे बर्फ में दबकर बाप मरा है

मानसरोवर के पीछे वैष्णो देवी भइया खोया आया

इस पर दुर्दिन है भीमराव का “बौद्ध” नहीं ये हिन्दू दलित/हरिजन है.

 

पढ़ -लिखकर धोखा देता है धूर्त बना मक्कार है

आरक्षण लेता बढ़ -बढ़कर कोठी, बंगला, कार है

अपनी जाति छिपाकर रहता बेटा इसका सर्जन है

भीमराव का “बौद्ध” नहीं ये हिन्दू दलित/हरिजन है.

 

सच्ची बात बताता इसको उसी को आँख दिखाता है

भगवा-रंग में सराबोर यह गीत राम के गाता है

हिन्दू-मुस्लिम के झगडे में सबसे आगे यही जन है

भीमराव का “बौद्ध” नहीं ये हिन्दू दलित/हरिजन है.

 

“बौद्ध”-साहित्य तनिक न भाता मौलिक चिंतन से ना प्यार

वर्ण-व्यवस्था ये ना जाने लिख-लिख करके गया मैं हार

पोंगा-पंडित को पढ़ता है जिसका झूठा दर्शन है

भीमराव का “बौद्ध” नहीं ये हिन्दू दलित/हरिजन है.

 

जुल्म इसकी कौम पे होते दिन रात

ये जात छुपा बैठा मंदिर सत्संग में

कर रहा अपने पूर्वजों के हत्यारों की पूजा

जिनसे बचना है ये उन्हीं के संग संग में

इसीलिए बाबा साहब कह गए बार बार

जुल्म करने वाले से सहने वाला ज्यादा है गुनहगार

मुझे मेरे पढ़े लिखों ने धोखा दिया रात दिन है

भीमराव का “बौद्ध” नहीं ये हिन्दू दलित/हरिजन है.