केसमुत्ति सुत्त या कालाम सुत्त तिपिटक के अंगुत्तर निकाय में स्थित भगवान बुद्ध के उपदेश का एक अंश हैं। [1] बौद्ध धर्म के थेरवाद और महायान सम्प्रदाय के लोग प्रायः इसका उल्लेख बुद्ध के ‘मुक्त चिन्तन’ के समर्थन के एक प्रमाण के रूप में करते हैं।केसमुति सुत्त अधिक बड़ा नहीं है, किन्तु इसका अत्यन्त महत्त्व है। ये सत्ये की कसौटी है , ये वो बात है जो तय करती है की इतने बड़े बौद्ध साहित्य में क्या सही है और क्या विरोधियों की मिलावट है , ये बौद्ध धम्म की जड़ है। यही से आप बौद्ध धम्म को जानना शुरू करो।
इस सूत्र में गौतम बुद्ध कहते हैं:
किसी बात को सिर्फ इसलिए मत मानो की ऐसा सदियों से होता आया है, परम्परा है, या सुनने में आई है। इसलिए मत मानो की किसी धर्म शास्त्र, ग्रंथ में लिखा हुआ है या ज्यादातर लोग मानते है। किसी धर्मगुरु, आचार्य, साधु-संत, ज्योतिषी की बात को आंख मूंदकर मत मान लेना। किसी बात को सिर्फ इसलिए भी मत मान लेना कि वह तुमसे कोई बड़ा या आदरणीय व्यक्ति कह रहा है, बल्कि हर बात को पहले बुद्धि, तर्क, विवेक, चिंतन व अनुभूति की कसौटी पर तौलना, कसना, परखना और यदि वह बात स्वयं के लिए, समाज व सम्पूर्ण मानव जगत के कल्याण के हित लगे, तो ही मानना।
“अपना दीपक स्वयं बनो”।।।।।।
गौतम बुद्ध के अनुयायी उनको को प्रसन्न करने के लिए, उनसे कुछ मांगने के लिए, स्वर्ग के लालच और नरक के भय से डरकर पूजा नहीं करते हैं.बल्कि सच ये है की पूजा ही नहीं करते वो उनकी वंदना करते हैं, उनकी वंदना बुद्ध के प्रति आभार प्रकट करने के लिए होती है, ठीक वैसे जैसे आप अपने स्कूल के शिक्षक का आभार प्रकट करें |
स्कुलो में शिक्षक हमें पढाते हैं, जिसके लिए उनको वेतन मिलता है, हम उनको नमस्कार करके तथा चरण-स्पर्श करके अपना आभार और आदर प्रकट करते हैं, आभार प्रकट न करना अशिष्टता माना जाता है| गौतम बुद्ध तो ऐसे आनोखे शिक्षक थे, जो बुद्धत्व प्राप्ति के बाद पैंतालिस वर्षो तक धम्म्चारिका करते रहे और लोगो को धम्म सिखाते रहे. वह चाहते तो बुद्धत्व प्राप्ति के बाद किसी आश्रम में या हिमालय पर जाकर शेष जीवन निर्वाण का आनंद लेते हुए बिता सकते थे. लेकिन उन्होंने अनंत करुना और मैत्री के साथ लोगो को धम्म बांटा .
अगर वो ऐसा नहीं करते तो आज यह अदभुत धम्म कैसे मिलता ? …..इसलिए धम्म मार्ग पर चलने वाला प्रत्येक व्यक्ति भागवान बुद्ध के प्रति कृतज्ञता से भर उठाता है और उसी कृतज्ञता और आभार को प्रकट करने के लिए पूजा करता है. बुद्ध का ज्ञान इतना प्रभावी है की, आज भी बैज्ञानिक युग में उतना ही प्रभाव है, जितना की भागवान बुद्ध ने २६०० वर्ष पहले उपदेशित किया था…… तथागत बुद्ध ने अपने उपदेशो में सबसे बड़ी बात कही है की किसी बात को इसलिए मत मानो की वह धर्म ग्रंथो में लिखी है, या किसी साधू संत ने कही है, किसी बात को इसलिए भी मत मानो की आपको प्रिय लगने वाले किसी व्यक्ति ने कही है. किसी भी बात को मानने से पहले उसे तर्क की कसौटी पर कास कर देखो की वह स्वं के हित के साथ मानवमात्र के हित में है या नहीं अर्थात किसी व्यक्ति या वर्ग के हित के लिए किसी दुसरे व्यक्ति या वर्ग का अहित करना घोर सामाजिक अन्याय है .
बुद्ध ने अपने अनुयाईयो को जबरदस्त स्वत्रन्त्रता दी है जो किसी और धर्म प्रवर्तक ने नहीं दी| संसार के किसी भी धर्म के प्रवर्तक ने अपने मत को जाच परख करने की किसी भी प्रकार की स्वतंत्रता नही दी है संसार के सारे धर्मो में बुद्ध ने ही अपने मत को जांच परख करने के बाद ही अपनाने या स्वीकार करने की स्वतंत्रता दी है ये उनके**बुद्ध धम्म** के अपने अनुयायियों की लिए दिमाक को खुला रखने का महान सन्देश है . ****** बुद्ध दीघ निकाय १/१३मे अपने शिष्य कलामों उपदेश देते हुए कहते है ……….. ;-
” हे कलामों , किसी बात को केवल इसलिए मत मानो की वह तूम्हारे सुनने में आई है , किसी बात को केवल ईसलिए मत मानो कि वह परंपरा से चली आई है -आप दादा के जमाने से चली आई है , किसि बात को केवल इसलिए मत मानो की वह धर्म ग्रंथो में लिखी हुई है , किसी बातको केवल इसलिए मत मानो की वह न्याय शास्त्र के अनुसार है किसी बात को केवल इसलिए मत मानो की उपरी तौर पर वह मान्य प्रतीत होतीहै , किसि बात को केवल इसलिए मत मानो कि वह हमारे विश्वास या हमारी दृष्टी के अनुकूल लागती है,किसि बात को इसलिए मत मनो की उपरीतौर पर सच्ची प्रतीत होती है किसीबात को इसलिए मत मानो की वह किसी आदरणीय आचार्य द्वारा कही गई है . कालामों ;- फिर हमें क्या करना चाहिए …….???? बुद्ध ;- …..कलामो , कसौटी यही है कीस्वयं अपने से प्रश्न करो कि क्याये बात को स्वीकार करना हितकर है…..???? क्या यह बात करना निंदनीय है …??? क्या यह बात बुद्धिमानों द्वारा निषिद्ध है , क्या इस बात से कष्ट अथवा दुःख ; होता है कलमों, इतना ही नही तूम्हे यह भी देखना चाहिए कि क्या यह मत तृष्णा, घृणा ,मूढता ,और द्वेष की भावना की वृद्धि में सहायक तो नहीहै , कालामों, यह भी देखना चाहिए किकोई मत -विशेष किसी को उनकी अपनी इन्द्रियों का गुलाम तो नही बनाता, उसे हिंसा में प्रवृत्त तोनही करता , उसे चोरी करने को प्रेरित तो नही करता , अंत में तुम्हे यह देखना चाहिए कि यह दुःख; के लिए या अहित के लिए तो नही है ,इन सब बातो को अपनी बुद्धि से जांचो, परखो और तूम्हे स्वीकार करने लायक लगे , तो ही इसे अपनाओ…….
I’m Satya Prakash ,my work is reading & teaching.I want Historical knowledge Maurya period
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