हमारे भारत देश की पावन भूमि पर अनेक साधु-सन्तों, ऋषि-मुनियों, योगियों-महर्षियों और महामानवों ने जन्म लिया है और अपने अलौकिक ज्ञान से समाज को अज्ञान, अधर्म एवं अंधविश्वास के अनंत अंधकार से निकालकर एक नई स्वर्णिम आभा प्रदान की है। चौदहवीं सदी के दौरान देश में जाति-पाति, धर्म, वर्ण, छूत-अछूत, पाखण्ड, अंधविश्वास का साम्राज्य स्थापित हो गया था। हिन्दी साहित्यिक जगत में इस समय को मध्यकाल कहा जाता है। मध्यकाल को भक्तिकाल कहा गया। भक्तिकाल में कई बहुत बड़े सन्त एवं भक्त पैदा हुए, जिन्होंने समाज में फैली कुरीतियों एवं बुराइयों के खिलाफ न केवल बिगुल बजाया, बल्कि समाज को टूटने से भी बचाया। इन सन्तों में से एक थे, सन्त कुलभूषण रविदास, जिन्हें रैदास के नाम से भी जाना जाता है।
सन्त रविदास का जन्म सन् 1398 में माघ पूर्णिमा के दिन काशी के निकट माण्डूर नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम संतोखदास (रग्घु) और माता का नाम कर्मा (घुरविनिया) था। सन्त कबीर उनके गुरु भाई थे, जिनके गुरु का नाम रामानंद था। सन्त रविदास बचपन से ही दयालु एवं परोपकारी प्रवृति के थे। उनका पैतृक व्यवसाय चमड़े के जूते बनाना था। लेकिन उन्होंने कभी भी अपने पैतृक व्यवसाय अथवा जाति को तुच्छ अथवा दूसरों से छोटा नहीं समझा।
सन्त रविदास अपने काम के प्रति हमेशा समर्पित रहते थे। वे बाहरी आडम्बरों में विश्वास नहीं करते थे। एक बार उनके पड़ौसी गंगा स्नान के लिए जा रहे थे तो उन्होंने सन्त रविदास को भी गंगा-स्नान के लिए चलने के लिए कहा। इस पर सन्त रविदास ने कहा कि मैं आपके साथ गंगा-स्नान के लिए जरूर चलता लेकिन मैंने आज शाम तक किसी को जूते बनाकर देने का वचन दिया है। अगर मैं तुम्हारे साथ गंगा-स्नान के लिए चलूंगा तो मेरा वचन तो झूठा होगा ही, साथ ही मेरा मन जूते बनाकर देने वाले वचन में लगा रहेगा। जब मेरा मन ही वहां नहीं होगा तो गंगा-स्नान करने का क्या मतलब। इसके बाद सन्त रविदास ने कहा कि यदि हमारा मन सच्चा है तो इस कठौती में भी गंगा होगी अर्थात् ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’। उसने सन्त रविदास के चरण पकड़ लिए और उसका शिष्य बन गया। धीरे-धीरे सन्त रविदास की भक्ति की चर्चा दूर-दूर तक फैल गई और उनके भक्ति के भजन व ज्ञान की महिमा सुनने लोग जुटने लगे और उन्हें अपना आदर्श एवं गुरु मानने लगे।
सन्त रविदास समाज में फैली जाति-पाति, छुआछूत, धर्म-सम्प्रदाय, वर्ण विशेष जैसी भयंकर बुराइयों से बेहद दुखी थे। समाज से इन बुराइयों को जड़ से समाप्त करने के लिए सन्त रविदास ने अनेक मधुर व भक्तिमयी रसीली कालजयी रचनाओं का निर्माण किया और समाज के उद्धार के लिए समर्पित कर दिया। सन्त रविदास ने अपनी वाणी एवं सदुपदेशों के जरिए समाज में एक नई चेतना का संचार किया। उन्होंने लोगों को पाखण्ड एवं अंधविश्वास छोड़कर सच्चाई के पथ पर आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया।
सन्त रविदास के अलौकिक ज्ञान ने लोगों को खूब प्रभावित किया, जिससे समाज में एक नई जागृति पैदा होने लगी। सन्त रविदास कहते थे कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सभी नाम परमेश्वर के ही हैं और वेद, कुरान, पुरान आदि सभी एक ही परमेश्वर का गुणगान करते हैं।
कृष्ण, करीम, राम, हरि, राघव, सब लग एकन देखा।
वेद कतेब, कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।
सन्त रविदास का अटूट विश्वास था कि ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परोपकार तथा सद्व्यवहार का पालन करना अति आवश्यक है। अभिमान त्यागकर दूसरों के साथ व्यवहार करने और विनम्रता तथा शिष्टता के गुणों का विकास करके ही मनुष्य ईश्वर की सच्ची भक्ति कर सकता है। सन्त रविदास ने अपनी एक अनूठी रचना में इसी तरह के ज्ञान का बखान करते हुए लिखा है :
कह रैदास तेरी भगति दूरी है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।।
एक ऐतिहासिक उल्लेख के अनुसार, चित्तौड़ की कुलवधू राजरानी मीरा रविदास के दर्शन की अभिलाषा लेकर काशी आई थीं। सबसे पहले उन्होंने रविदास को अपनी भक्तमंडली के साथ चौक में देखा। मीरा ने रविदास से श्रद्धापूर्ण आग्रह किया कि वे कुछ समय चित्तौड़ में भी बिताएं। संत रविदास मीरा के आग्रह को ठुकरा नहीं पाए। वे चित्तौड़ में कुछ समय तक रहे और अपनी ज्ञानपूर्ण वाणी से वहां के निवासियों को भी अनुग्रहीत किया। सन्त रविदास की भक्तिमयी व रसीली रचनाओं से बेहद प्रभावित हुईं और वो उनकीं शिष्या बन गईं। इसका उल्लेख इस पद में इस तरह से है :
वर्णाश्रम अभिमान तजि, पद रज बंदहिजासु की।
सन्देह-ग्रन्थि खण्डन-निपन, बानि विमुल रैदास की।।
संत रविदास मानते थे कि हर प्राणी में ईश्वर का वास है।
इसलिए वे कहते थे :
सब में हरि है, हरि में सब है, हरि आप ने जिन जाना।
अपनी आप शाखि नहीं दूजो जानन हार सयाना।।
इसी पद में सन्त रविदास ने कहा है :
मन चिर होई तो कोउ न सूझै जानै जीवनहारा।
कह रैदास विमल विवेक सुख सहज स्वरूप संभारा।
सन्त रविदास ने मथुरा, प्रयाग, वृन्दावन व हरिद्वार आदि धार्मिक एवं पवित्र स्थानों की यात्राएं कीं। उन्होंने लोगों से सच्ची भक्ति करने का सन्देश दिया।
सन्त रविदास ने मनुष्य की मूर्खता पर व्यंग्य कसते हुए कहा कि वह नश्वर और तुच्छ हीरे को पाने की आशा करता है लेकिन जो हरि हरि का सच्चा सौदा है, उसे प्राप्त करने की चेष्टा नहीं करता है।
हरि सा हीरा छांड कै, करै आन की आस।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत आषै रविदास।।
कुलभूषण रविदास ने सामाजिक, धार्मिक एवं राष्ट्रीय एकता के लिए भी समाज में जागृति पैदा की। उन्होंने कहा:
रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।
तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि।।
हिन्दु तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।
दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।।
सन्त रविदास ने इसी सन्दर्भ में ही कहा है :
मुसलमान सो दोस्ती हिन्दुअन सो कर प्रीत।
रैदास जोति सभी राम की सभी हैं अपने मीत।।
सन्त रविदास ने लोगों को समझाया कि तीर्थों की यात्रा किए बिना भी हम अपने हृदय में सच्चे ईश्वर को उतार सकते हैं।
का मथुरा का द्वारिका का काशी हरिद्वार।
रैदास खोजा दिल आपना तह मिलिया दिलदार।।
सन्त रविदास ने जाति-पाति का घोर विरोध किया। उन्होंने कहा :
रैदास एक बूंद सो सब ही भयो वित्थार।
मूरखि है जो करति है, वरन अवरन विचार।।
सन्त रविदास अपने उपदेशों में कहा कि मनुष्य को साधुओं का सम्मान करना चाहिए, उनका कभी भी निन्दा अथवा अपमान नहीं करना चाहिए। वरना उसे नरक भोगना पड़ेगा। वे कहते हैं :
साध का निंदकु कैसे तरै।
सर पर जानहु नरक ही परै।।
सन्त रविदास ने जाति-पाति और वर्ण व्यवस्था को व्यर्थ करार दिया और कहा कि व्यक्ति जन्म के कारण ऊंच या नीच नहीं होता। सन्त ने कहा कि व्यक्ति के कर्म ही उसे ऊंच या नीच होता है।
रैदास जन्म के कारणों, होत न कोई नीच।
नर को नीच करि डारि है, ओहे कर्म की कीच।।
इस प्रकार कुलभूषण रविदास ने समाज को हर बुराई, कुरीति, पाखण्ड एवं अंधविश्वास से मुक्ति दिलाने के लिए ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया और असंख्य मधुर भक्तिमयी कालजयी रचनाएं रचीं। उनकीं भक्ति, तप, साधना व सच्चे ज्ञान ने समाज को एक नई दिशा दी और उनके आदर्शों एवं शिक्षाओं का मानने वालों का बहुत बड़ा वर्ग खड़ा हो गया, जोकि ‘रविदासी’ कहलाते हैं। ।
सन्त रविदास द्वारा रचित ‘रविदास के पद’, ‘नारद भक्ति सूत्र’, ‘रविदास की बानी’ आदि संग्रह भक्तिकाल की अनमोल कृतियों में गिनी जाती हैं। स्वामी रामानंद के ग्रन्थ के आधार पर संत रविदास का जीवनकाल संवत् 1471 से 1597 है। उन्होंने यह 126 वर्ष का दीर्घकालीन जीवन अपनी अटूट योग और साधना के बल पर जीया।
संत रविदास जी की जो बात मुझे सबसे अच्छी लगी वह यही है की उन्होंने अपनी आजीविका कमाते कमाते ही अपना दर्शन विकसित किया और संत का जीवन व्यतीत किया, उन्होंने भिक्षा का सहारा नहीं लिया|
=================================================================================
डॉ आंबेडकर का निम्न कोटेशन देखिये :
“मेरे अध्ययन के मुताबिक भारत देश के संतों ने कभी भी जात और छुआ-छुत को मिटाने के लिए आन्दोलन नहीं चलाया। वो मनुष्यों के बीच के संघर्ष के लिए चिंतित नहीं थे। बल्कि वो (ज्यादा) चिंतित थे मनुष्य और ईश्वर के बीच के सम्बन्ध के लिए। “~डॉ बी .आर. आंबेडकर~ सन्दर्भ:-Annihilation of castes – P-127. Author:- Dr. B.R.Ambedkar
आज हम देख रहे हैं की हमारे बहुत से लोग बहुजन गुरुओं ………..तक ही अपने को सीमित रखना चाहते हैं| मैं अपने ऐसे लोगों से अनुरोध करूंगा की बहुजन गुरुओं के दर्शन से थोडा आगे बढिए और बौद्ध दर्शन को भी समझिये| मानना न मानना बाद की बात है पर खुद को सीमित मत करिए|
जरा सोचिये अगर डॉ आंबेडकर ने बौद्ध धम्म में वापस लौटने को चुना है तो जरूर कोई भला ही होगा|बाबा साहब ने धम्म इसलिए चुन था ताकि उनकी अनुपस्थिथि में उनका काम धम्म करता रहेगा उनके जाने के बाद बहुजनों की तरक्की का सिलसिला नहीं रुकेगा|
हमारे लोगों की भी क्या गलती उसे तो जो मीडिया ने बता दिया वही मान लिए वो तो मान कर बैठे हैं की अनीश्वर वाद और अहिंसा ही धम्म की शिक्षा है|
आप खुद सोचो की क्या सिर्फ अहिंसा से दुःख दूर किया जा सकता है अरे हमारे लोग तो पहले ही पिछड़े हैं कमजोर हैं और कमजोर तो पहले ही शील ,करुणा, मैत्री और अहिंसा के मार्ग पर चल रहा है वो चाहकर भी इनके विरुद्ध नहीं जा सकता|भगवान् बुद्ध एक क्रन्तिकारी हैं वो विश्व के पहले क्रन्तिकारी हैं जिन्होंने दुख का मूल कारन गलत सरकारी नीतियाँ, धार्मिक आडम्बर और आर्थिक विषमता (unequal distribution of national income) के खिलाफ न केवल आवाज़ उठाई बल्कि बड़े ही सुनियोजित तरीके से दर्शन ज्ञान और मार्ग खोज जिसके प्रचार प्रसार के लिए बौद्ध भिक्खुओं की फ़ौज खड़ी की| धम्म पूंजीपतियों और शोषकों के के खिलाफ क्रांति है|
सदा ध्यान रहे मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या आर्थिक विषमता (unequal distribution of national income) के खिलाफ जुझने वालों में पहला नाम गौतम बुद्ध का है|यह भारी दुःख का विषय है कि गौतम बुद्ध की छवि एक ऐसे व्यक्ति के रूप चित्रित की गयी है जिसने अहिंसा के धर्मोपदेश के साथ पंचशील का दर्शन दिया है,जबकि सचाई यह है कि वे दुनिया के पहले ऐसे क्रांतिकारी पुरुष थे जिन्होंने आर्थिक विषमता को इंसानियत की सबसे बड़ी समस्या चिन्हित करते हुए समतामूलक समाज निर्माण का युगांतरकारी अध्याय रचा|
बौद्ध धम्म का मकसद बहुत ज्यादा विस्तृत है जिसमें से एक है बहुजन हिताए बहुजन सुखाय है बहुजन का दुःख दूर करना है|पता नहीं हमारे लोग क्यों नहीं समझ रहे की विरोधी धम्म के कमजोर पक्ष को उजागर कर रहे हैं और शक्तिशाली पक्ष को दबा रहे हैं|महामानव बुद्ध और बहुजन गुरुओ दोनों ने जातिवाद और वर्णव्यस्था की बुराई की है और मानव कल्याण को प्राथमिकता दी| हम सभी जानते हैं की बहुजनों का ही नहीं समस्त भारतवर्ष का समस्त मानवता है भला जाती भेद नस्ल भेद और वर्णव्यस्था का दमन करने में हैं| सभी बहुजन गुरुओं ने भी अपने सरे जीवन इसी जातिवाद और वर्णव्यस्था और मनुवाद की खिलाफत की, अपने लेखन या दर्शन में मानव कल्याण के बातें की| बौद्ध धम्म मार्ग में भी जातिवाद और वर्णव्यस्था और मनुवाद की न केवल खिलाफत की बल्कि उसके मुकाबले सम्पूर्ण व्यस्था और कामयाब क्रांति खड़ी की| धम्म ने जीवन की हर पहलों पर व्यस्था दी| हमारे समस्या ये है की धम्म को ठीक से मीडिया में समझाने नहीं दिया जा रहा|
भारत की 80% बहुजन असल में बौध जनता है जिसे विरोधियों ने षडियंत्र के तहत अलग अलग महापुरुष देकर अलग अलग खूंटे से बांध दिया है|इसे हमारे लोग समझ नहीं पा रहे हैं, जब हम बुद्धा की बात करते हैं तो वे वाल्मीकि, रविदास, कबीर अदि की बात करते हैं, निसन्देह ये भी बुद्धा के समतुल्य हैं, पर जब तक हम एक सर्वमान्य सिद्धांत को नहीं पकड़ेंगे एक झंडे के नीचे नहीं आ पाएंगे|आपसे प्रार्थना है की मानो या न मानो पर धम्म को जानो तो सही|
हमारी मुक्ति केवल मानव और इश्वर के सम्बन्ध की चर्चा से नहीं होगी|क्या आप कभी ये नहीं सोचते की बौद्ध साम्राज्य के पतन से लेकर आंबेडकर क्रांति के बीच के लगभग दो हजार सालों में कोई भी इश्वर बहुजनों को बचने क्यों नहीं आया, क्यों उस इश्वर ने इतनी सदियों तक अपने मानवों की सुध नहीं ली| इश्वर का सिद्धांत निसंदेह व्यावहारिक रूप से जरूरी है आम जनता कभी ईश्वरवाद को नहीं छोड़ पायेगी पर बौध धम्म में ईश्वरवाद का प्रश्न तो अव्याकृत प्रश्न है| आप मनो या न मानो ये आपकी इच्छा है बौध धम्म मार्ग में इस प्रश्न का कोई महत्व नहीं| इसके आलावा बौध धम्म में बाकि की बहुत से बातें ऐसी हैं जो बहुजन गुरुओं से कहीं ज्यादा आगे का दर्शन ज्ञान और मार्ग उपलब्ध करते हैं| बहुजन गुरुओं को छोड़ना नहीं है बल्कि हमें बस इतना समझना है की उनका ज्ञान जिस भी बिंदु पर संशयात्मक स्तिथि पैदा करता है वहां बुद्धा धम्म ज्ञान हर संशय का संतुस्ठ उत्तर उपलब्ध करता है|बहुजन गुरुओं और बौध धम्म दोनों एक दुसरे के पूरक हैं दोनों ही हमारा मार्गदर्शन करवाते हैं |
अपने आप को कहीं भी सीमित न करो, अगर वाकई अपना उद्धार करना है तो सारा दर्शन खंगाल डालो यहाँ तक की सभी अन्य धर्म के सभी ग्रन्थ भी और तभी आप फैसला कर पाओगे की क्या सही है क्या गलत|
महाशय आपने गुरु रविदास के बारे जो लिखा वह ब्राह्मणीकरण की हुई कहानी है गुरु रविदास जी निराकारवादी और श्रमवादी सन्त थे रमानन्द उनके या कबीर गुरु नही थे यह बकवास है
और डा. भीमराव अम्बेडकर ने जो सन्तो के बारे मेँ कहा है वह कबीर और रविदास को छोड़कर बाकी दूसरे सन्तो के बारे मेँ कहा था कबीर जी उनके पहले अध्यात्मिक गुरु थे ।
गौतम बुद्ध ने सफल आंदोलन चलाया, जबकि गुरुओं ने मार्गदर्शन किया, इस कारन गौतम बुद्ध की परंपरा को छोड़ देना उचित न होगा| डॉ आंबेडकर अगर आपको बुद्ध तक पहुंचा गए हैं तो उनकी बात तो मनो , उनपर भरोसा तो करो| कृपया दोबारा शांति से पढ़ें और समझें, हम गुरु रविदास और गुरु कबीर को गौतम बुद्ध के सामान ही मानते हैं| पर हमारा मानना ये है की ऐसा नहीं होना चाहिए की हम गुरु तक ही सीमित रहे और बुद्ध तक पहुंचे ही नहीं| हमें केवल मार्गदर्शन ही नहीं एक सफल राजनैतिक और ऐतिहासिक क्रांति का जरूरत है| एक बात और मैं इस पक्ष में हूँ की हमें बौद्ध विहारों में गुरु रविदास और गुरु कबीर की भी मूर्तियां अनिवार्ये रूप से लगनी चाहिए दूसरा गुरु रविदास और गुरु कबीर के मंदिरों में भी गौतम बुद्ध की मूर्ती लगनी चाहिए| ये सभी बहुजन परंपरा के ही महापुरुष हैं |जब ब्राह्मणवादी लाखों करोड़ों देवी देवता को एक लीक में पिरो कर हिंदुत्व को बनाए रख सकते हैं तो क्या हम लोग दस बीस महापुरुषों को भी एक साथ नहीं रख सकते|आप मुझे बताएं की क्या आप गौतम बुद्ध को छोड़ देना उचित समझते हैं ?
अगर हम खुद को डॉ आंबेडकर और गौतम बुद्ध की तस्वीर और इनके सम्मान तक ही सीमित रखेंगे तो हमको इनसे कुछ नहीं मिलेगा, इनकी विचारधारा जरूरी है और उसी में हमारा भला है| अगर हम विचारधारा को छोड़कर इनकी तस्वीर से लगाव रखेंगे, बढ़ावा देंगे तो डॉ आंबेडकर और गौतम बुद्ध का हाल भी आर्य अनार्ये युद्ध के बहुजन नेता एव योद्धा शिव शंकर के जैसा हो जायेगा, लोग इनको पसंद करेंगे पूजा करेंगे, शिव की ही तरह भगवान भी मानने लगेंगे लेकिन लाभ कुछ नहीं होगा, इससे लाभ उन्हीं को होगा जो इन भगवानों की ब्रांड के मालिक होंगे जैसे ब्राह्मण| हे बहुजनों इस कुटिल नीति को समझो की ‘तस्वीर बहुजन मुक्तिदाताओं की ही रहती है ताकि जन विद्रोह न हो जाये बस उनकी कहानियां और इतिहास को विरोधी अपने पक्ष में गढ़ लेते हैं और इन बहुजन महापुरुषों के मरने के बाद उसके नाम पर कमाई खाते हैं| इससे हम सच नहीं जान पाते और इन झूठी कहानी और इतिहास से हम वही जानते हैं जो हमारे दुश्मन हमको बताना चाहते हैं, परिणाम स्वरुप हम अनजाने में उनकी ही व्यस्था जो हमारे खिलाफ होती है, उसी को बढ़ाने और पालने में लग जाते हैं, इसे कहते हैं आँख बंद कर के अपने पैर पे अपनी ही कुल्हाड़ी मार लेना| क्या आप इस बात को समझ पाये ?…समयबुद्धा https://samaybuddha.wordpress.com
आप ने गलत कहा सर अंबेडकर जी ने सभी की वाणी पढ़ी लेकिन जो रविदास जी की वाणी है वो मानवता और जाती को ख़त्म करने वाली थी ……और सब एक समान माना अंबेडकर जी
चाहे रविदास जी खूनी था
Hmara सब कुछ है.
सबसे पहले था ओर रहेगा.
रामानद जी रविदास जी महाराज जी के गुरु थे।
राम नाम जपते थे। पहला शब्द ही मुख से राम निकला जब बोलना शुरू किया।
Agree
Dr br ambedkar–mera 3 guru 1buddh2kabir3jyotibafule
रविदास ने पड़ोसी को पानी के बर्तन पर गंगा बहते हुए दिखाया ये बात झूठी है तथा चमत्कार को बढ़ावा देने वाली बात है। कृपया इस प्रकार के अंधश्रद्धा वाली बात को अपने पोस्ट में मत जोड़ा करे।
Dhyan dilane ke liye dhnyawad, hamne wo sabhi apattijanak lines delete kar di is lekh se…Keep reading
Jb log चमत्कार की bhasa smjh te the to रविदास जी को भी ये krna pda
ताकि bhramno की पोल खोली जा ske
सर संत रविदास (रोहिदास) याचे जीवन चरीञ किंवा त्याबद्दल सत्य माहिती साहित्य असेल तर मेल वर पाठवा
संत रोहिदास (रविदास) यांचे गुरू गोविंद महाराज असे सांगतात
त्याच्या नावावरुन आमच्या गावाचे नाव होते चांभारगोंदा या नावाने पहिले होते आता श्रीगोंदा या नावाने ओळखले जाते गोविंद महाराजांची समाधी आहे या ठिकाणी त्यामूळे सत्य काय आहे
ते कळावे
क्यासंत कवीर जी संत रवि दास के गुरु थे
Nhi ji गुरु bhai थे
We should b proud of our saints .
yes
बाबा साहिब ने अपना महान ग्रन्थ अछूत कौन और कैसे तीन महान संतो को समर्पित किया था जिनमे गुरु रविदास जी भी शामिल हैं
धम्ममित्र मै आपसे सहमत हु और एक बात बता दु की महाराष्ट्र में विशेष नागपुर मे जितने भी हमारे जाग्रुक जन रहतो है तथा वह जीन वीहारो को संभालते वहा रोहीदास तथा संत कबीर जी की प्रीक्रुतीय (चित्र) भी लगा रखे है.
महाशय आपने गुरु रविदास के बारे जो लिखा वह ब्राह्मणीकरण की हुई कहानी है गुरु रविदास जी निराकारवादी और श्रमवादी सन्त थे रi
मानन्द उनके या कबीर गुरु नही थे यह बकवास हैi
और डा. भीमराव अम्बेडकर ने जो सन्तो के बारे मेँ कहा है वह कबीर और रविदास को छोड़कर बाकी दूसरे सन्तो के बारे मेँ कहा था कबीर जी उनके पहले अध्यात्मिक गुरु थे ।
सम्पूर्ण सत्य क्या है दुख का कारण सुख हैं मोह माया लालच दूर रहें तब कुछ समाज के लिए कर सकते हैं
अगर लोगों से यह पूछा जाय कि मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या क्या है,बहुत कम लोगो का जवाब होगा-‘आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी’!किन्तु सचाई तो यही है कि हजारों साल से निर्विवाद रूप से ‘आर्थिक और सामाजिक गैर –बराबरी’ ही मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या रही है और आज भी है.इसी के कारण भूख,कुपोषण,गरीबी,वेश्या वृत्ति, विच्छिन्नतावाद,उग्रवाद जैसी दूसरी अन्य कई समस्यायों की सृष्टि होती रही है.यही वह सबसे बड़ी समस्या है,जिससे निजात दिलाने के लिए ई.पू.काल में भारत में गौतमबुद्ध,चीन में मो-ती,ईरान में मज्दक,तिब्बत में मुने-चुने पां;रेनेंसा उत्तरकाल में पश्चिम में होब्स-लॉक ,रूसो-वाल्टेयर,टॉमस स्पेंस,विलियम गाडविन ,सेंट साइमन ,फुरिये,प्रूधो,रॉबर्ट ओवन,लिंकन,मार्क्स,लेनिन तथा एशिया में माओत्से तुंग,हो चि मिन्ह,फुले,शाहूजी,पेरियार,आंबेडकर,लोहिया,जगदेव प्रसाद, कांशीराम इत्यादि जैसे ढेरों महामानवों का उदय तथा भूरि-भूरि साहित्य का सृजन हुआ एवं लाखों-करोड़ों लोगों ने अपना प्राण-बलिदान किया.इसके खात्मे को लेकर आज भी दुनिया के विभिन्न अंचलों में छोटा-बड़ा आन्दोलन/संघर्ष जारी है.
बहरहाल आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी के खात्मे को लेकर मानव जाति के इतिहास में जो विपुल चिंतन हुआ है उसका ठीक से अनुधावन करने पर यही दिखता है कि पूरी दुनिया में ही इसकी सृष्टि शक्ति के स्रोतों के विभिन्न सामाजिक समूहों और उनकी महिलाओं के मध्य असमान बंटवारे के कारण होती रही है.ध्यान देने की बात है कि सदियों से ही मानव समाज जाति,नस्ल,लिंग,भाषा,धर्म इत्यादि के आधार पर कुई समूहों में बंटा रहा है,सिर्फ अमीर-गरीब के दो भागों में नहीं जैसा कि मार्क्सवादी दावा करते हैं.जहां तक शक्ति का सवाल है ,सदियों से समाज में इसके तीन प्रमुख स्रोत रहे हैं-आर्थिक,राजनीतिक और धार्मिक.शक्ति ये स्रोत जिस सामाजिक समूह के हाथों में जितना ही संकेंद्रित रहे,वह उतना ही शक्तिशाली,विपरीत इसके जो जितना ही इससे दूर रहा वह उतना ही दुर्बल व अशक्त रहा.सदियों से समतामूलक समाज निर्माण के लिए जारी संघर्ष और कुछ नहीं,शक्ति के स्रोतों में वंचितों को उनका प्राप्य दिलाना मात्र रहा है.
यह सही है कि हजारों साल से सारी दुनिया में शासक-वर्ग ही कानून बनाकर शक्ति का बंटवारा कराकर करता रहा है.पर,यदि हम यह जानने का प्रयास करें कि सारी दुनिया के शासकों ने अपनी स्वार्थपरता के तहत कौन सा ‘कॉमन उपाय’अख्तियार कर शक्ति का असमान वंटवारा कराया तो हमें विश्वमय एक विचित्र एकरूपता का दर्शन होगा.हम पाएंगे कि सभी ही शक्ति के स्रोतों में सामाजिक (social)और लैंगिक (gender)विविधता(diversity)का असमान प्रतिबिम्बन कराकर मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या की सृष्टि करते रहे.किन्तु आर्थिक और सामाजिक विषमता के पृष्ठ में सामाजिक और लैंगिक विविधता की क्रियाशीलता की सत्योपलब्धि आधुनिक मानवताबोध के उदय के साथ बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में ही जाकर पश्चिम के शासक कर पाए.इसकी सत्योपलाब्धि कर अमेरिका ,ब्रिटेन,फ़्रांस,आस्ट्रेलिया,न्यूज़ीलैंड इत्यादि जैसे लोकतान्त्रिक रूप से परिपक्व देशों ने अपने-अपने देशों में शक्ति के सभी स्रोतों में सामाजिक और लैंगिक विविधता लागू करने की नीति पर काम करना शुरू किया.इसके परिणामस्वरूप उन देशों में महिलाओं,नस्लीय भेदभाव के शिकार अश्वेतों,अल्पसंख्यकों इत्यादि को सत्ता की सभी संस्थाओं,उद्योग-व्यापार,फिल्म-टीवी,शिक्षा के केन्द्रों इत्यादि में सहित शक्ति के तमाम स्रोतों में वाजिब भागीदारी मिलने लगी.ऐसा होने पर उन देशों में आर्थिक और सामाजिक विषमता से उपजी तमाम समस्यायों के खात्मे तथा लोकतंत्र के सुदृढ़ीकरण की प्रक्रिया तेज़ हुई.
अब Sharm आती है इनको चमार कहलवाने me… जो.. चमार होने के कारण bolna sikh gye… Jai गुरु रविदास जी महाराज
Jai भीम
Shayad aapko pata nahin hai par Dr Ambedkar ne humko chamar bane rahne ko nahin balki BAUDH banne ko kaha hai… Chamarvaad faila kar Brahmanon ke haath majboot mat karo…
Right bro I’m viru jatav chamar hamako pata he Guru Ravidas bhud bhikachu the naki Hindu
Right bro I’m viru jatav hamako pata he Guru Ravidas Baudhh vicharak the naki Hindu
आपके पास कोई साक्ष्य हैं जो ये बताए कि बाबा साहब ने हमे बौद्ध धर्म अपनाने की बात कही है,,,,,
सारा बहुजन समाज ये जनता है , ये वीडियो देखो https://www.youtube.com/watch?v=k9xpKMo79cM
अगर आप बौद्ध बनते हैं तो फिर जाति और आरक्षण का मोह क्यूं
Sayad Hamare Mulniwasiyo Ko Pata Nhi Devta Koun Hai Jai Bhim Jai Ravidas
डॉ . बाबासाहेब आंबेडकर यांनी प्राचीन काळातील संत नांदणार मध्ययुगीन काळातील संत चोखामेळा आणी गुरु रविदास या तीन महापुरुषांना ” द अन्टेचबल”हा ग्रंथ या संतांच्या कार्यास समर्पित केला आहे.