25-APRIL-2013 के पूर्णिमा धम्म संघायन पर समयबुद्धा कि विशेष धम्म देशना:- “शूद्र ,अछूत,राक्षश,हरिजन की तरह “दलित” शब्द भी कलंक है इसे त्यागो, अपने लिए सम्मानजनक सम्बोधन चुनो बहुजन/बौद्ध बनो” …समयबुद्धा


जब भगवन बुद्धा ने हमको बहुजन और श्रमण कहा जब साहब कांशीराम ने हमें बहुजन बनाने को कहा, जब बाबा साहब ने कभी हमें दलित नहीं कहा, तो फिर हमारे लोग अपने लिए विरोधियों का दिया हुआ नाम दलित क्यों इस्तेमाल कर रहे हैं|खुद को दलित कहने से आपको केवल अपमान ही मिलेगा, हो सकता है जरा सी झूठी सहानुभूति मिल भी जाए पर अगर सम्मान चाहिए तो आपको बहुजन बौद्ध बनना ही पड़ेगा | ये जिन्दगी का नियम है की कमजोर कोई कोई नहीं और शक्तिशाली का सब साथ देते हैं|आखित कब तक आप दलित बने रहोगे ?
कुछ बेवकूफों को अपने शूद्र होने का अफ़सोस नहीं है बल्कि अपनी विरोधियों का गुलाम होने में फक्र है

“ज्ञात हो कि शूद्र ,अछूत,राक्षश की तरह “दलित” शब्द भी धम्म विरोधियों द्वारा फैलाया गया भ्रामक जाल है जो भारतीय बहुजनों  की इस पीढ़ी और आने वाली पीढयों को मानसिक रूप से कमजोर बनाये रखेगा। दलित शब्द कलंक है इसे त्यागो,अपने लिए ऐसे सम्भोधन चुनो जो आपकी शक्ति दिखाए कमजोरी नहीं| दलित शब्द कमजोरी बताता है,खुद को बौद्ध कहो और गौरवशाली विजेता बौद्ध इतिहास से जोड़ो |खुद को बहुजन कहो, बहुजन शब्द जनसंक्या बल दर्शाता है जिसमें सभी 6000 जातियां में बटे भारतीय लोग आते हैं|इन छह हज़ार जातियों में से कुछ को छोड़कर ९५% जातियां कभी खुद को दलित कहलवाना पसंद नहीं करेंगी, इससे तो वो हिन्दू रहना पसंद करेंगे| कमजोर के साथ कोई नहीं जुड़ना चाहता|इन छह हज़ार जातियों में कई जातियां ऐसी हैं जो उन्नत हैं वे बहुजन होते हुए भी अपने भाइयों से घृणा करते हैं उनपर अत्याचार करते हैं क्योंकि वो खुद को हिन्दू और इनको दलित समझते हैं|जबकि बहुजन निति कहती है की हमें ऐसे लोगों को अगड़े बहुजन और दलितों को पिछड़े बहुजन कहना और कहलाना होगा|इससे इन लोगों को लगेगा की हाँ दोनों ही बहुजन हैं| ये बहुत गहरी बात है गहरी नीति है इसे समझने के लिए उतना मानसिक स्थर होना जरूरी है | इज्ज़त मांगी नहीं जाती कमाई जाती है,जब तुम अपनी इज्ज़त खुद करोगे तभी तो दुनिया भी करेगी

धम्म विरोधियों की सबसे बड़ी ताकत ये है की उनमे से एक निति बनता है और बाकि साब उसको मानते हैं चलते हैं क्योंकि उनमें उस निति को समझने कीक्षमता होती है| वहीँ हमारे लोगों को नीति समझ में ही नहीं आती अपने दिमाग में जो भी भरा है वो उसे बदलने को टायर नहीं उल्टा विरोध करते हैं|उदाहरण के लिए छह हजार जातियों में बंटे भारत की संतानों को हम उनकी अलग अलग जाती से और आंबेडकरवादियों को दलित कहकर सम्भोदित करने की बजाये  हम कहते हैं की इन सभी को भगवन बुद्धा और साहब कांशीराम का दिया हुआ नाम “बहुजन” कहो|जब तक दलित बने रहोगे आपके अपने लोग जो SC/ST/OBC/Minorities में आते हैं वही आपके साथ नहीं जुडेगें| जब तक संगठित नहीं होगे तो स्तिथि कैसे बदलेगी|दलित को दलित बनाये रखने के लिए वो लोग संगर्ष कर रहे हैं आप अपने को उठाने के लिए क्या कर रहे हो|हमारे लोग अक्सर शिकायत करते मिल जायेंगे की वैदिक/ब्राह्मण धर्म का नाम बदल कर हिन्दू रख लिया |उनमें निति बने समझने और सामूहिक रूप से लागू करने क्षमता थी, उन्होंने समय और परिस्थिति को समझ कर नाम रखने और बदलने की निति लागू की,संगठन देखिये की बाकि के सभी मनुवादियों ने इस नाम का महत्व समझा और अपनाया,क्या हमारे लोगों में है ये क्षमता? |परिणाम इस निति से बहुत से बहुजन को अपने शूद्र होने का अफ़सोस नहीं है बल्कि हिन्दू होने का गर्व करते हैं और हमारे लोग केवल शिकायत करते हैं …. उस वर्ग विशेष का संगठन  देखिये की से लाख अन्याय होने के बावजूद कोई  विरोध नहीं करता| पर हमारे लोगों को देखो निति की कीमत और फायदा तो समझते नहीं हैं उल्टा भरपूर विरोध करते हैं |इस तरह क्या दलित अपनी दुर्दशा का खुद ही जिम्मेदार नहीं है ?

जातिसूचक शब्द, शूद्र ,अछूत,राक्षश की तरह “दलित”  शब्द का सम्भोदन आपको आपके विरोधियों द्वारा दिया गया है| उन्होंने आपको इन्हीं नामों से सरे इतिहास में बेईज्ज़त किया है|मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूँ क्या आप उन्हीं के दिए नामों में खुश हो?क्या आप अपने लिए कोई इज्जतदार नाम रखना या चुनना नहीं चाहते| आप आने लिए अपने लिखित और मौखिक व्यवहार  में बहुजन /बौध शब्द का प्रयोग कर विरोधियों को करने दो उनके बनाये शब्धों का प्रयोग आप खुद क्यों करते हो| समय आने पर उनको भी सम्मानजनक शब्द स्वीकार करने पर बाध्य होना  पड़ेगा| नाम में बहुत बात होई है हमारे लोग इसे नहीं समझ पाते|बस किसी भी तरह जैसे तैसे पैदा हो गए कुछ भी कलुआ,चंगु,मंगू ,अदि शब्दों से अपने आप नाम पड़ जाता है| नाम के आगे विजय को सूचित करता हुआ टायटल  तो इस्टेमाल करते ही नहीं है क्योंकि ये लोग अपना इतिहास ही नहीं जानते|जबकि इनके विरोधी अपना खानदानी नाम बड़े गर्व से अपने नाम के पीछे  लगाये घुमते हैं|कुछ सोचते ही नहीं बाद जैसे तैसे जीते हैं बेहतरी के लिए कुछ नहीं करना चाहते|जब अपना खुद का नाम आप नहीं रख पाते तो फिर अपनी कौम का नाम क्या रखोगे| तो बस आपके विरोधयों ने रख दिया जो उनकी अच्छा लगा| एक और बात है नाम में ज्यादा जोर देने से भी फर्क नहीं पड़ेगा ये कर्मों से जुड़ा होता है| उदाहरण के लिए सफाई कर्मचारी को नाम बदल कर राजाधिकारी रख दे पर वो अपना काम न बदले तो जब भी राजाधिकारी नाम बोल जायेगा तो वो निम्नता को ही सूचित करेगा| केवल अच्छा नाम रख लेबे से भी समाधान नहीं होगा उसे अच्छा बनाना  भी होगा|

अछूतपन बौद्धों पर लगाया गया कलंक है, हमे इससे खुद को और बाबा साहब को आजाद करने की जरूरत है। तभी बाबा साहब के सपने को साकार कर पाएंगे। बाबा साहब ने हमे दलित नाम नहीं दिया था, उन्होने हमे केवल ‘अनुसूचित जाति’ नाम दिया था और अपने अनुयायियों से बौद्ध धम्म अपनाने की अपील की थी। उनके 2 बड़े सपने थे, पहला की कोई अनुसूचित जाति का व्यक्ति भारत का हुक्मरान हो, और दूसरा की ये लोग बौद्ध धम्म का सारे संसार मे प्रचार करें, बौद्ध धम्म का प्रचार करना ही मानवता की सेवा करना है। इनके अनुयाई अपने बाबा साहब के सपनों से बहुत दूर दिखाई देते हैं, बाबा साहब ये सारे काम अपने जीवन मे ही करना चाहते थे पर उम्र ने साथ नहीं दिया। उन्होने अपने धर्म ग्रहण के 15 वर्षों के अंदर भारत के बौद्ध देश होने की कल्पना की थी, ये लोग अभी भी ‘दलित’ जैसे घटिया तमगों से चिपके हुए हैं। सपना क्या खाक पूरा करेंगे!!!!!!!!!!!!!!!

इस देश में बौद्ध क्रांति होकर दबा दी गई, बाबा साहब आंबेडकर आके चले गए, पर अफ़सोस कुछ जागरूक लोगों को छोड़कर बाकी पूरा बहुजन समाज आज भी सो रहा है| इस देश में बहुजन ने अपने उद्धारक को  देखने को आँखे नहीं खोली, उनकों सुनने को कान नहीं खोले, उनके बारे में अपनी अगली पीढ़ी को बताने को अपनी जबान नहीं खोली|बहुजनों की दुर्दशा केवल इसलिए नहीं है क्योंकि उसके विरोधी धनि और शक्तिशाली हैं बल्कि इसलिए भी है क्योंकि वो 6000 से ज्यादा जातियों में बटा हुआ है|जब एक जाती का दमन होता है तो बाकि 5999 जातियां चुपचाप देखती और दमन करने में परोक्ष या अपरोक्ष रूप से विरोधितों की मदत करती हैं|अफ़सोस डॉ आंबेडकर और भगवान् बुद्धा जो की समस्त बहुजन समाज के मार्गदाता  हैं सारा अन्भिग्ये बहुजन समाज उनको केवल दलितों तक सीमित रककर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं”.

बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर ने १९५६ में बुद्ध के धम्म की दीक्षा ली, परन्तु वास्तविक बुद्ध का प्रचार 1932-1935 से ही सुर किया था, बाबासाहेब डॉ. आम्बेकर ने जितने भी उपदेश लोगो को दिए उसमे अनेको बार बुद्ध का उल्लेख करने मे कोई कही कसर नहीं छोड़ी है। इसके अनेको भाषणों के उदारण दे सकते है। 9/10/2012 का आदरणीय बहन मायवती का भाषण सुना, लगभग आ. बहन मायवती ने 100 जादा बार दलित शब्द का प्रयोग करके बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर, के बुद्धवाद का अपमान करने में कोई कसर नहीं छोडती। इनके साथ इनके कार्यकर्ता भी बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर का अपमान करने में कही कसर नहीं छोड़ते। इसी प्रकार बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर, के नाम से चलने वाले गैर राजनेतिक संघटन, चाहे बामसेफ हो या और कोई भी बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर, के बुद्धवाद का अपमान करने में कही कोई कसर नहीं छोड़ते।

जो लोग दलित-शुद्र-अतिशूद्र शब्दों का प्रयोग करते है, उनसे निवेदन है की उन्होंने Dr. Ambedkar, writing & Speeches, सम्पूर्ण खंड पड़े और विशेष करके Vol. 18-3 पड़े। दलित-शुद्र-अतिशूद्र यह शब्द बुद्धिज्म के विकास के लिए कैसे घातक है, यह डॉ. आम्बेडकर ने अपने भाषणों से लोगो को समजाया है। (Ref. Dr. Ambedkar, writing & Speeches, Vol. 18-3,) और यह भी स्पष्ट किया है की मेरे जीवनकाल के अंतिम दिन बुद्ध के प्रचार के लिए समर्पित करूंगा। जिन लोगो ने दलित इस शब्द को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान हासिल की है और दलित-शुद्र-अतिशूद्र शब्दों का प्रयोग करते है यह लोग दुनिया में बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर के घोर विरोधी और डॉ. आंबेडकर के बौद्धवाद के हत्यारे है।

the bombay cronical

हमारे लोग हर वक़्त खुद पर हुए अन्याय की   शिकायत करते रहते हैं , ठीक है कीजिये जनजागरण भी जरूरी है|अगर पुराने अत्याचार की चर्चा नहीं करेंगे तो आज की  आराम तलब पीढ़ी को कैसे पता चलेगा की ये समय आराम का नहीं शक्ति इकठ्ठा करने का है|इस सब प्रचार प्रसार में मेरी इच्छा ये है की जब भी कोई कहीं कोई शिकायत या अत्याचार की चर्चा करता है वो उसके अंत में उसका  समाधान निति, जो भी उसके मन में हो जरूर लिखे|कमेंट में भी लोग समाधान लिखें| आज बहुजन के बड़ते वर्चस्व की शिकायत ब्राह्मणवादी लोग तो नहीं कर रहे उनका जवाब होता है – हर बार नई नीति बनाते और लागू करते हैं | हमारे लोग क्यों निति नहीं बनाते, अगर कोई बनाये भी तो बाकि उसे नहीं समझते, उद्धरण के लिए मैंने हर बार कहा की दलित शब्द का प्रयोग न करो पिछड़े बहुजन कहो, ओ बी सी को अगड़े बहुजन कहो, एस टी को आदिवासी बहुजन कहो| हम सब बहुजन हैं इस शब्द से ही सबकी संबोधित करो तो आपस में एक होने की भावना जागृत होगी| पर क्या इस बात को कोई समझा, हमारे लोग बड़े गर्व से दूसरों का दिया नाम दलित लगा कर घूम रहे हैं और सारे संगर्ष पर पानी फेर रहे हैं| ध्यान रहे कमजोर का कोई नहीं होता जब तक दलित बने रहोगे आपके अपने लोग ओ बी सी और एस टी भी आपका साथ नहीं देंगे, वो भी घृणा करेंगे|

…समयबुद्धा

jileraj@gmail.com

13 thoughts on “25-APRIL-2013 के पूर्णिमा धम्म संघायन पर समयबुद्धा कि विशेष धम्म देशना:- “शूद्र ,अछूत,राक्षश,हरिजन की तरह “दलित” शब्द भी कलंक है इसे त्यागो, अपने लिए सम्मानजनक सम्बोधन चुनो बहुजन/बौद्ध बनो” …समयबुद्धा

  1. Namo Buddhay

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    Thank You

    Yours in Dhamma
    Des Raj Bolina
    Date: Tue, 28 May 2013 05:40:36 +0000
    To: desrajbolina@hotmail.com

  2. Pingback: who says there is no more Untouchability in INDIA, see Doucumentry- INDIA UNTOUCHED | SamayBuddha

  3. Pingback: भारत के बहुजनो/बौद्धों की पहचान, राष्ट्रीय दलित स्मारक 2011, नोएडा…एडवोकेट कुशाल चन्द्र रैगर | बौद

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  5. Pingback: हर पूर्णिमा पर समयबुद्धा कि धम्म देशना यहाँ इस वेब्साईट पर पब्लिश कि जाती है| सन 2013 कि समयबुद्धा कि

  6. गुलामी का अहसास इतना अधिक मत करो कि हमारी आजाद मानसिकता ही गुलाम हो जाये… हमारे मुक्ति नायक और चाहे कुछ न कर पाए हों किंतु उन्होंने हमारी मानसिकता को हमेशा आजाद रखा है… आजाद होने के लिए हमें अपनी मानसिकता को आजाद रखना ही होगा… गुलामी का अहसास आजाद मानसिकता पैदा करने के लिए है, गुलाम मानसिकता से ग्रसित होने के लिए नहीं इसलिए इस आत्मघाती प्रवृत्ति से दलित चिंतक बचें…”

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